बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र
अध्याय - 8
भारत में सामाजिक आन्दोलनों के द्वारा सामाजिक परिवर्तन : कृषक आन्दोलन,
श्रमिक आन्दोलन, दलित आन्दोलन, महिला आन्दोलन तथा पर्यावरणीय आन्दोलन
(Social Change Through Social Movements in India: Peasant Movement, Labour Movement,
Dalit Movement, Women's Movement and Environmental Movement)
प्रश्न- उत्तर प्रदेश के किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिए।
उत्तर -
भारत में प्रमुख कृषक आन्दोलन
(Major Peasant Movements in India)
भारत के अधिकतर हिस्सों में किसानों की कठिनाइयाँ लगभग एक समान होने के बाद भी वहाँ कि सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक और राजनीतिक संरचना में ज्यादा भिन्नता देखने को मिलती है। यही वजह है कि भारत में कृषक आन्दोलन की प्रकृति को समझने के लिए विभिन्न राज्यों में होने वाले कृषक आन्दोलनों की पृष्ठभूमि और कारणों को समझना आवश्यक है।
उत्तर प्रदेश के कृषक आन्दोलन
(Peasant Movements of Uttar Pradesh)
भारत में उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला कृषि प्रधान राज्य है। स्वतन्त्रता से पहले और स्वतन्त्रता के बाद इस राज्य में आन्दोलनों का अपना एक अलग ही इतिहास रहा है। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन, छात्र आन्दोलन, श्रमिक आन्दोलन राजनीतिक आन्दोलन, महिला आन्दोलन, कृषक आन्दोलन आदि सभी में उत्तर प्रदेश की अग्रणी भूमिका रही है। कृषक आन्दोलनों में भी उत्तर प्रदेश का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उत्तर प्रदेश एक कृषि प्रधान राज्य है लेकिन यहाँ के किसानों की स्थिति अत्यन्त दुखद रही है। इसके उपरान्त भी उत्तर प्रदेश में कृषक आन्दोलनों का प्रारम्भ काफी देर से हुआ। ऐतिहासिक तथ्यों से ज्ञात होता है कि सर्वप्रथम सन् 1920 ई० में आगरा और अवध क्षेत्र के कृषकों ने अपनी परेशानियों के लिए आन्दोलन किया था। सन् 1920 ई० में आगरा अवध के किसानों के साथ कुछ सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने भी इस आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। देश में महात्मा गाँधी द्वारा जब 'असहयोग आन्दोलन' के माध्यम से स्वतन्त्रता की अलख जगाई जा रही थी, तब इसी आन्दोलन को मुख्य आधार बनाकर कृषकों ने भी मूल्य वृद्धि, बेगार, कर, जुर्माना और नजराने के खिलाफ आन्दोलन करना शुरू किया। इस आन्दोलन की विशेषता यह थी कि इसमें सभी तरह के जाति-भेद को भूलकर कृषकों ने स्वयं को संगठित करके सरकार और जमींदारों का प्रखर विरोध किया और आंशिक रूप से इसमें अन्हें सफलता भी प्राप्त हुई।
आगरा में कृषकों द्वारा सन् 1920 ई० में किये गये विरोध से प्रभावित होकर सन् 1921-22 ई० में उत्तर प्रदेश में 'एका कृषक आन्दोलन' हुआ। इस अवधि में उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास चौरा चौरी स्थान में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जमींदार और कृषक सम्मिलित रूप से विरोध कर रहे थे, वहीं एका आन्दोलन के माध्यम से कृषकों ने संगठित होकर बेगार, नजराना, बेदखली, कम श्रम - मूल्य के विरोध में आन्दोलन शुरू किया।
आगरा और अवध में बँटाईदार किसानों ने सन् 1930-32 ई० में भूपतियों के खिलाफ पुनः एक बार संगठित होकर आन्दोलन किया। इस आन्दोलन में समाज के सभी वर्गों ने किसानों का साथ दिया और कृषकों की माँग को लेकर वकीलों, प्रबुद्ध वर्गों और काशी विद्यापीठ वाराणसी के शास्त्री उपाधिधारक स्नातकों की प्रमुख भूमिका रही। उत्तर प्रदेश के इस कृषक आन्दोलन में गाँधी और सरदार पटेल की विचारधारा का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
उत्तर प्रदेश के कृषक आन्दोलन में एक मुख्य आन्दोलन बस्ती जिले का सन् 1936 ई० का 'निजाई बोल आन्दोलन' है। उत्तर प्रदेश में पहली बार कृषक मजदूरों ने अपने मालिकों के खिलाफ भू-स्वामित्व के लिए आन्दोलन किया था। बाद में यह आन्दोलन बहुत अधिक हिंसक हो गया। इसमें बहुत-से जमींदार और किसान आगजनी, लूटमार और हत्या के शिकार हुए थे। बस्ती का निजाई बोल आन्दोलन वर्षों से उत्तर प्रदेश के शोषित किसानों को आक्रोश था जो अपने सब्र का तोड़ चुका था। सन् 1936 ई० में शुरू हुए इस आन्दोलन का स्वरूप सामान्य था लेकिन सन् 1937 ई० में बस्ती के जमींदारों द्वारा अहीर, कुर्मी और चमार जातियों के किसानों का बेगार के नाम पर प्रताड़ित करने और * आधी मजदूरी देने के कारण यह हिंसक हो गया। खेतिहर मजदूरों के विरोध करने पर जमींदारों ने शारीरिक यातना से लेकर कृषकों की झोपड़ियाँ जलाना और महिलाओं को अपमानित करना शुरू कर दिया जिससे आन्दोलन बहुत तीव्र और हिंसक हो गया। उत्तर प्रदेश के निजाई बोल आन्दोलन में पहली बार सामान्य कृषकों की चेतना भी बेगार और मालिकाना के नाम पर हो रहे आर्थिक शोषण, खेतिहर श्रमिक महिलाओं पर बलात्कार, सवर्ण मालिकों द्वारा निम्न जाति की स्त्रियों को रखैल बनाने की परम्परा आदि के खिलाफ जाग्रत हुई। इस आन्दोलन में कृषकों को राजनीतिक सहयोग भी मिला निजाई बोल आन्दोलन धीरे-धीरे उग्र रूप धारण करने लगा जिसके परिणामस्वरूप सन् 1939 ई० में भू-स्वामियों और बँटाई मजदूरों में लगान की दर को लेकर खेतों में ही लाठी- बल्लम चलने लगे जिसमें पहली बार एक भू-स्वामी हत्या हुई। इस झगड़े में पचास से अधिक व्यक्ति जख्मी हुए थे। उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में शुरू हुए निजाई बोल आन्दोलन ने बाद में जब उग्र रूप धारण कर लिया तो जमींदारों और सवर्ण जातियों द्वारा आन्दोलन को रोकने और किसानों पर अपना दबदबा बनाये रखने के लिए गाँव के कुओं और तालाबों से पानी लेने से किसानों को रोका जाने लगा।
निजाई बोल आन्दोलन की विवेचना करते हुए प्रो० राजेन्द्र सिंह लिखते हैं कि “मालिकाना लगान, बेगार, हथियाही ( जमींदार को हाथी खरीदने के लिए पैसा जुटाना) और बियाहू (जमींदार की पुत्री के विवाह का प्रबन्ध) जैसे नये करों को न चुका सकने का कारण किसानों की फसल खत्म होने लगी। इसीलिए बस्ती के सभी किसानों ने योजनाबद्ध रूप से हिंसक आन्दोलन किया। इसमें किसानों ने अपने साथियों को आम के बाग में छुपाकर प्रतिबन्धित तालाब से पानी लेना आरम्भ किया। इस पर जमींदार और उनके साथियों ने किसानों को रोकने का प्रयास किया तो चतुराई का प्रदर्शन करते हुए किसान मालिकों के हाथ जोड़कर पैर छूने लगे। यह वास्तव में माफीनामा नहीं बल्कि एक संकेत था और तभी आम के बाग में छिपे अन्य किसानों ने हमला कर दिया। इस समय किसानों ने मालिक के पैर कसकर पकड़ लिए जिससे वे भाग न सकें। अचानक हुए इस हमले में मालिक और उनके बहुस - से समर्थक मारे गये। मालिक की लाश को उसकी हवेली के फाटक पर फेंककर कृषकों ने मकी दी कि अगर अब किसी ने हथियाही, बियाहू या मालिकाना हक माँगा तो उसका भी हाल होगा। करों के अतिरिक्त जमींदार वर्ग द्वारा किये जा रहे धार्मिक शोषण के कारण यह आन्दोलन भी उग्र हुआ।" उदाहरण के लिए, सन् 1944 ई० में बस्ती का एक जमींदार अपने बँटाईदार के हाथों मारा गया क्योंकि हिन्दू जमींदार मुस्लिम बँटाईदार से हिन्दू देवी-देवता के नाम बुलवाता था और ऐसा न करने पर उस पर सुअर का मल-मूत्र फेंकता था। इस्लाम में सुअर के मांस का धार्मिक निषेध है, अतः बँटाईदार ने मानसिक पीड़ा से परेशान होकर इसका विरोध किया। मुस्लिम जमींदारों द्वारा भी कुछ इसी तरह हिन्दू गरीब किसानों को प्रताड़ित किया जाता था। हिन्दू गरीब किसान अपनी फसल नहीं काट सकते थे, सब्जी-दूध नहीं बेच सकते थे। इस तरह धार्मिक रूप से प्रताड़ित होने पर सभी किसानों ने जमींदार को घेरकर और फरसे से मार-मार कर उसकी लाश के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। इस तरह निजाई बोल आन्दोलन में अनेक जमींदारों और कृषकों की हत्याएँ भी हुईं। यह सन् 1936 ई० से 1953 ई० तक चला।
उत्तर प्रदेश में निजाई बोल आन्दोलन के बाद सन् 1970 ई० में बस्ती में पुनः एक नये प्रकार का कृषक आन्दोलन शुरू हुआ। सन् 1970 ई० में बस्ती में कृषकों ने 'भूमि हथियाओ आन्दोलन' शुरू किया। निजाई बाल आन्दोलन जहाँ कृषकों की शोषण के खिलाफ लड़ाई को बताता है, वहीं सन् 1970 ई० का भूमि हथियाओ आन्दोलन का उद्देश्य किसानों द्वारा आर्थिक लाभ और सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करना था। भूमि हथियाओ आन्दोलन द्वारा बस्ती के मुस्लिम और अस्पृश्य हिन्दू किसानों ने संगठित होकर सवर्ण हिन्दुओं की भूमि को हथियाने के लिए आन्दोलन किया। इस आन्दोलन का आरम्भ बस्ती जिले से हुआ लेकिन इसका नेतृत्व बाहर के लोगों का था। धार्मिक संगठनों और शासन भी इस आन्दोलन के कारण यह आन्दोलन दबा देने के कारण पूर्णतः असफल हो गया। बस्ती के बाहर भी इस आन्दोलन का प्रारम्भ हुआ लेकिन यह कहीं भी सफल नहीं हो सका।
उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह तथा चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने भी 80 के दशक में, विशेषकर गन्ने के समर्थन मूल्य और बिजली बिल माफी को लेकर उग्र किसान आन्दोलन किये। चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने तो मेरठ और बागपत के हजारों किसानों का नई दिल्ली के बोट क्लब में स्थाई रूप से धरना-प्रदर्शन करके केवल राज्य सरकार को ही नहीं बल्कि केन्द्र सरकार को भी झुकने के लिए मजबूर किया।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जैविकीय कारकों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन (Cultural Lag) के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी ने पारिवारिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित व परिवर्तित किया है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए- (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैविकीय कारक का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
- प्रश्न- विकास के अर्थ तथा प्रकृति को स्पष्ट कीजिए। बॉटोमोर के विचारों को लिखिये।
- प्रश्न- विकास के आर्थिक मापदण्डों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के आयामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति की सहायक दशाएँ कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति के मापदण्ड क्या हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
- प्रश्न- क्रान्ति से आप क्या समझते हैं? क्रान्ति के कारण तथा परिणामों / दुष्परिणामों की विवेचना कीजिए |
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए।
- प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास क्या है?
- प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबलन के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन क्या है? सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक ) एवं भावात्मक ( विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सैडलर के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का प्राकृतिक प्रवरण का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- संस्कृतिकरण का अर्थ बताइये तथा संस्कृतिकरण में सहायक अवस्थाओं का वर्गीकरण कीजिए व संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रमुख विशेषतायें बताइये। संस्कृतिकरण के साधन तथा भारत में संस्कृतिकरण के कारण उत्पन्न हुए सामाजिक परिवर्तनों का वर्णन करते हुए संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- भारत में संस्कृतिकरण के कारण होने वाले परिवर्तनों के विषय में बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण का अर्थ एवं परिभाषायें बताइये। पश्चिमीकरण की प्रमुख विशेषता बताइये तथा पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणाम बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण ने भारतीय ग्रामीण समाज के किन क्षेत्रों को प्रभावित किया है?
- प्रश्न- आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन में संस्कृतिकरण एवं पश्चिमीकरण के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण में सहायक कारक बताइये।
- प्रश्न- समकालीन युग में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जातीय संरचना में परिवर्तन किस प्रकार से होता है?
- प्रश्न- स्त्रियों की स्थिति में क्या-क्या परिवर्त हुए हैं?
- प्रश्न- विवाह की संस्था में क्या परिवर्तन हुए स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- परिवार की स्थिति में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक रीति-रिवाजों में क्या परिवर्तन हुए वर्णन कीजिए?
- प्रश्न- अन्य क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों के विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए विभिन्न विद्वानों के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- डा. एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- डेनियल लर्नर के अनुसार आधुनिकीकरण की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- आइजनस्टैड के अनुसार, आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइये।
- प्रश्न- डा. योगेन्द्र सिंह के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- ए. आर. देसाई के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ तथा परिभाषा बताइये? भारत में आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण बताइये।
- प्रश्न- भारतीय समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण का अर्थ, परिभाषा व तत्व बताइये। लौकिकीकरण के कारण तथा प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण के प्रमुख कारण बताइये।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है? धर्मनिरपेक्षता के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- वैश्वीकरण क्या है? वैश्वीकरण की सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिक्रिया की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर वैश्वीकरण और उदारीकरण के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था पर प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में वैश्वीकरण की कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. वैश्वीकरण और कल्याणकारी राज्य, 2. वैश्वीकरण पर तर्क-वितर्क, 3. वैश्वीकरण की विशेषताएँ।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. संकीर्णता / संकीर्णीकरण / स्थानीयकरण 2. सार्वभौमिकरण।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण के कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के गुणों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के सामाजिक आधार की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कीजिये। भारत मे सामाजिक आन्दोलन के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- "सामाजिक आन्दोलन और सामूहिक व्यवहार" के सम्बन्धों को समझाइये |
- प्रश्न- लोकतन्त्र में सामाजिक आन्दोलन की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलनों का एक उपयुक्त वर्गीकरण प्रस्तुत करिये। इसके लिये भारत में हुए समकालीन आन्दोलनों के उदाहरण दीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के तत्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विकास के चरण अथवा अवस्थाओं को बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विभिन्न सिद्धान्तों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "क्या विचारधारा किसी सामाजिक आन्दोलन का एक अत्यावश्यक अवयव है?" समझाइए।
- प्रश्न- सर्वोदय आन्दोलन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सर्वोदय का प्रारम्भ कब से हुआ?
- प्रश्न- सर्वोदय के प्रमुख तत्त्व क्या है?
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ? इसके स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन के प्रकोप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की क्या-क्या माँगे हैं?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की विचारधारा कैसी है?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का नवीन प्रेरणा के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का राजनीतिक स्वरूप बताइये।
- प्रश्न- आतंकवाद के रूप में नक्सली आन्दोलन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- "प्रतिक्रियावादी आंदोलन" से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न - रेनांसा के सामाजिक सुधार पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'सम्पूर्ण क्रान्ति' की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रतिक्रियावादी आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के संदर्भ में राजनीति की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में सरदार वल्लभ पटेल की भूमिका की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रतिरोधी आन्दोलन" पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश के किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन क्या है? भारत में किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन की आधुनिक प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में मजदूर आन्दोलन के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' के बारे में अम्बेडकर के विचारों की विश्लेषणात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में दलित आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारकों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- महिला आन्दोलन से क्या तात्पर्य है? भारत में महिला आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- पर्यावरण संरक्षण के लिए सामाजिक आन्दोलनों पर एक लेख लिखिये।
- प्रश्न- "पर्यावरणीय आंदोलन" के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिये। -
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन के प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलनों के सामाजिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलन के सामाजिक प्रभाव क्या हैं?